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परम पूज्य माता लाल देवी जी

ज्ञान और विज्ञान की पराकाष्ठा पर पहुंचा मानव नित्य नए साधनों से जीवन को सुन्दर व समृद्ध बना रहा है। जो सदियों से चाँद की कल्पना में खोया रहता था. आज चाँद की सतह पर जा पहुँचा है। अतल सागर की गहराई और असीम विस्तार को उसका पुरुषार्थ उसकी कल्पना की उडान बुद्धि की परिपक्वता और जुझारू कर्मठता से विस्मयविमुमा कविहृदय पूछ उठता है--

“इस गुज, इस प्रज्ञा के सम्मुख कौन ठहर सकता है ? कौन विभय यह जो कि मनूज को दुर्लभ रह सकता है ?”

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किन्तु विधाता की सर्वोत्कृष्ट रचना मनुष्य की छवि का एक रूप और भी है।

सृष्टि का सबसे समर्थ प्राणी मानव आज भीतर से सर्वाधिक कमजोर भी है। हर व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई अभाव, कोई कमी और किसी तरह की त्रासदी है। सुख समृद्धि पा लेने पर भी उसका मन ऑयल और हथेलियों जैसे खाली है। अपुर्ण कामनाएँ द्रौपदी के चीर जैसी बती अमिलाएं और हर पल घेर लेती समस्याएं उसे उलझाती रहती है। दिशा पाने को आतुर उसका मन किसी दिव्य शक्ति की खोज में दौड़ा जाता है। उसके दृष्टिपथ को आलोकित करती प्रभु की शक्ति अपने अनेक मानव-प्रतिरूपों में उभरती है। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं--


“जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मून्त तिन देखी ऐसी”|

इन विराट व्यक्तित्वों में से अपने मन व बुद्धि की सीमा के अनुसार हम एक गुरू व दिशानिर्देशक खोजने लग जाते हैं। ये पुण्यात्माएँ हमारे जैसी प्रतीत होती हुई भी इससे बहुत उपर है। संसार विपतिसागर में ये प्रकाशस्तम्भ हमारे भटकते मन को राह दिखाते है। स्वष्टा प्रभु की कृपा इनके माध्यम से हमारा संबंध बनती है और नाना प्रकार से हमारी रक्षा करती है। प्रभु की कृपा का ऐसा की साकार प्रतिरूप परम पूज्य प्रातःस्मरणीय माता लाल देवी जी है। परम पूज्य माता जी उतर भारत व पंजाब में माडल टाउन वाली माता जी कहलाने वाली लाखों भालूओं की ममतामयी पत्तल मा रूप में प्रसिद्ध है। तेतीस करोड़ देवी देवताओं को पूजने वाले धर्मभीस भारतीयों को प्रभु की शक्ति अनेक मतो व कर्मकाण्डों और नियमों से लुभाती तो है पर उलझाती भी है। रूप रख गुण जाति जाति जुगत दिन निरालम्ब मन चक्रत धावे कई धर्म ग्रन्थ वेद पुराण और शास्त्र राह दिखाने में सक्षमा तो है पर अपनी समस्याओं में मकड़ी सा उलझा छटपटाता हमारा मन सीधे सरल समाधान चाहता है। पूज्या माता लाल देवी जी ने इस जरूरत को दी डी पहचान लिया था जैसे ममतामयी जननी बिना पूछे ही सन्तान की मांग को पहचान लेती है। मां उसके तप्त मस्तक पर अपना पद दस्त रख कर उसकी आँखों से बढ़ते आँसुओं को अपनी पलकों में समेट लेते है। धर्म की दुर्गम राह को सरलता का सहज बना कर माता जी ने अनेकों को दिशा ही नहीं दी उनकी पहचान भी दी और अच्छा मनुष्य बनने की प्रेरणा भी दी। सभी वर्गों व जातियों के लोगों को सभी देवों व गुरूओं को समान रूप से सम्मान देना उनकी अनुपम महानता रही।

जीवन परिचय

"जगदम्बा जेंड अवतरी सो पुर बरनि की जाई
रिद्धि सिद्धि संपति सुख नित नूतन अधिकाई ।।

मान्यवर भवतजनो

श्री राम चरित्र मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने उपरलिखित चौपाई में मां जगदम्बा के अवतरण स्थान का जो चित्रण किया है वो इस लाल भवन धाम जहाँ परम पूज्य ने अपना आसन लगाया, पर अक्षरशः सत्य उतरता है अन्तर केवल यह है कि यह चौपाई इस स्थान के बारे में हैं जहाँ पर आने वाले डर जीवके घर रिद्धि सिद्धियों की कमी नहीं रहती और संसार के सभी सुख उनकी झोली में आ जाते हैं। शक्ति पीठ लाल भवन धाम की मातृ स्वरूप पूज्य माता जी ने 21 फरवरी 1923 को कसूर पाकिस्तान में अवतार लिया। माता लाल मवानी जी ने अपनी अध्यात्मिक प्रवृत्ति से जन्म से ही सात्विक आधार लिया और आयुप्रयन्त फलाहार लिया अर्थात अन्न का सेवन नहीं किया। तेजस्वी माता जी ने 9 मास की अल्प आयु में मा चिन्तपूर्णी के दरबार में चिन्तपूर्णी के प्रवेश के दर्शन देकर सब को आश्चर्यचकित कर दिया और विद्वावनों इन्हें मां चिन्तपूर्णी का साक्षत रूप घोषित किया। उपरान्त कुछ समय बाद परम पूज्य माता जी ने हर मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को देवी आवेशमें बैठे श्रद्धालुओं को उनकी कामना अनुसार दर्शन देकर उनकी झोलियां मरी माता लाल देवी के चार भाई श्री चरणदास जी श्री ज्ञानचन्द जी श्री लालचन्द जी तथा श्री सोहन लाल जी थे सुश्री ज्ञानावती व केसरी जी दो बहनें थी। यह सराफ परिवार कृष्णोपासक था अतः कृष्णभक्ति के संस्कार माता जी के मन में चिचपन से ही पुष्ट हो गए थे। उनके जन्म के बाद परिवार अनेक समय से चला आ रहा मुकदमा जीत गया। अन्य अनेक प्रकार के कष्टों से छूटता चला गया। इस पुण्यात्मा के प्रभाव व उनसे जुड़ी अनेक घटनाओं ने परिवार के सदस्यों में परिवर्तन ला दिया। उनका कृष्णिया परिवार भगवती दुर्गा की -अराधना की और प्रवृत हो गया। श्रद्धामयी माता जी नौ मास की थी. तब इनका पूरा परिवार होशियारपुर में चिन्तपूर्णी धाम गया। नौ महीने की बच्ची बैठना भी नहीं सीख पाई थी कि मंदिर परिसर में पिण्डी देवी के दर्शन करते ही उनके शरीर में विशेष शक्ति-संचार देखा गया। देवी आवेश में समाधिस्थ होकर ये झूमने लगी। आश्चर्य चकित परिवार व उपस्थित पंडित महन्तों ने समझ लिया कि बालिका चिन्तपूर्णी का अवतार है उनके परिचित व पडौसी इस दिव्य पालिका को माता जी कह कर पुकारने लगे। बचपन आने वाले जीवन का दर्पण होता है। पूत को पैर पालने में ही दिख जाते हैं। छोटी सी उम्र से ही मां का दूध ग्रहण न कर माता जी गाय का दूध लेती रहीं। पाँच वर्ष की अल्प आयु में अन्न त्याग कर दूध व फल के अन्य आहर पर निर्भर रह कर सात्विक वृति में तल्लीन रहे। साठ-प्राठ वर्ष की छोटी सी उम्र में ही दिनरात भगवद्न्यान में लगी यह बालिका असाधारण थी। उनके कमरे से आते दिव्य अलोकिक प्रकाश य कई गार छोटी बच्चियों के हँसने की आवाज परिवार की महिलाओं को आश्चर्य में डाल देती। सारी सारी रात उन्हें ध्यान में तल्लीन देखा गया। जेट की तपती दोपहर को यह समाधिस्थ अवस्था में छत पर पाए गए। लगभग बारह वर्ष की उम्र में माता जी को घर पर छोड कर इनका परिवार इरिद्वार गया। मान्यता है कि इनकी करुण पुकार पर भगवती गंगा ने इन्हें इनके घर पर दर्शन दिये व एक दिव्य पात्र भी दिया। गंगा से जुड़ा यह गठबधन पूज्या माता जी को आजीवन इरिद्वार से जोड़ा रहा। उनके आलौकिक जीवन का अत्यन्त आनन्दमय समय गंगा और हरिद्वार के परिवेश व जुड़ा हुआ है। वर्ष में तीन-चार बार शिष्यों के साथ इरिद्वार जाते रहे और गंगा के प्रति अपनी निष्ठा य लगाय प्रमाणित करते रहे। भारतवर्ष उनने यो बाद परम पूज्य माता जी ने अमृतसर आने पर इस भवन में आसन लगाया और यहाँ आयु प्रयन्त कई लीलाएँ की जो पु का प्रसाद आप को इस भवन में मिलता है यह पूज्य माता जी द्वारा अपन श्रद्धालुओं के लिए संजीवनी बूटी है जिससे पाई असाध्य रोगों का इलाज होता है निःसंतान दम्पतियों को सन्तान प्राप्त होती है और इससे यह असम्भव से असम्भव कार्य भी इन पुष्पों के सेवन मात्र से सम्भव हो जाते हैं। सन् 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद माता जी अमृतसर के एक श्रद्धालु भक्त पिण्डीदास के पास रेलवे के मालगोदाम में रहे। 1953 में मडारी पुल के निकट गांगरमल की सराय में रहे। जहाँ जहाँ ये रहें उनकी संगत छूती रही। बाद में ये रानी का बाग, माडल टाउन डा गए। उनके श्रद्धालुओं की संख्या और बती गई। उनके आदेश व संकल्प ने लाल भवन निर्माण की योजना को रूप देना शुरू किया जो आज अमृतसर का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान बन चुका है।

लाल भवन

अमृतसर वो माडल टाउन में स्थित लाल भवन आज दूरदूर एक सुविख्यात है। जुलाई 1956 में पूज्य माता लाल देवी जी ने एक साधारण ही चौकी पर आदमी जागरण पर इस धरती को पवित्र किया और मंदिर का शिलान्यास किया । शुरू में एक दो छोटे-छोटे कमरों में फलों टांगण ने कार्य आपन हुआ पूजा माता जी की कृष्ण उनकी प्रेरणा और संगत की लगन व परिश्रम से धीरे-धीरे इस भवन या विस्तार होता गया। शिव परिवार लक्ष्मी नारायण, पाम दरबार हनुमान मंदिर श्री राधाकृष्ण मंदिर भगवती काली, चिन्तपूर्णी शीतला माँ दुर्गा जीन्य संतोषी माँ को मंदिर बनाए गए। संगत की सुविधा यो लिए कमर व हॉल बनाये गये। समय कम से लाल भवन में अनेक मंदिर बनते गए मंगलवार को स्त्रियों व रविण को पुरुषों का तशीतन शुरू हुआ प्रतिदिन योग पशिष्ट आदि को हो माता जी आसन पर कई-कई घंटे बैठ कर संगत के कल्याण के लिए याद प्रदान करते रह

लगर

लंगर के लिए गांवो से आने वाली संगत नई फसल के आने पर उसमे से हिस्सा डाल कर पूज्य माता जी का आर्शीवाद लेती है। सुबह की चाय से दिन की शुरुआत करती संगत माता जी के मंदिर में 11 बजे आरती के बाद लंगर के प्रसाद के रूप में हलवा-दाल पाती है। बजे नये लंगर डाल में जो कि मंदिर परिसर की पहली मंजिल पर बना है, दोपहर के स्वादिष्ट भोजन परोसा जाता है जिसका सेवन हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन करते हैं। माता जी की असीम कृपा से यह कम सालों से निरन्तर जारी है।

वैष्णवी गुफा

परम पूज्य माता जी ने इस मंदिर का निर्माण अपने कर-कमलों से किया तो मा वैष्णो देवी ने साक्षात्कार का कर कहा कि सभी देवताओं का स्थान बना है, हमारा भी बनाओ तब इस अलौकिक देवी की गुफा का निर्माण हुआ और परम पूज्य माता जी ने मा देणों के साथ हुए साक्षात्कार के अनुरूप ही आदेश दिया कि जो भी अपनी मन्नत मनाने किसी कारणवश वैष्णो देवी न जा सके तो यहा आ कर अपनी मन्नत पूरी कर सकता है माता जी ने अपनी संगत को लाल भवन में पैशाक देवी माता का मंदिर बनवाने का उत्साहित किया। माता जी मौन रहकर भी अपनी सगत से अपने मन की बात कहने में समर्थ पड़े। मंदिर की पवित्र गुफा में कलकल बहता जल यात्रा के विभिन्न पड़ाद, विभियत स्थापित मा काली महालक्ष्मी और महासरस्वती की पिंडियाँ और उन पर उकेरे गए आकार अद्भुत है। मान्यता है कि मंदिर निर्माण में लगे जयपुर से आए मूर्तिकारों को भगवती ने विराट रूप में दर्शन दिये थे। ये पिंडियों सत्य रुज व तम गुणों द्वारा हमारे व्यक्तित्व विकास प्रगति और सुरक्षा की प्रतिक है। छोटे से परिसर में प्राचीन वैष्णव देवी मंदिर सदृश भव्य निर्माण कर मानों गागर में लागर भरवाने का अकल्पनीय कार्य पूज्य माता जी ने संपन्न करवाया परम पूज्य माता जी ने अपने अालुओं यो नम सुख परम शांति के लिए हरि ओम् हरिओम हर आम हरे महामंत्र दिया जिसका जाप भक्तों के लिए अडुवान है। परम पूज्य माता हरि नाम संकीर्तन के इसी कारण इस जाल भवन में डर समय किसी न किसी तरह हरि नाम का उच्चारण होता रहता है।

टरस्ट

नए भवन का निर्माण होने पर परम पूज्य माता जी ने मन्दिर के सभी प्रकार के कार्यों को सुचारू ग से चलाने को लिए पूज्य माता लाल देवी ट्रस्ट की स्थापना की और सभी कार्य इसी दरस्ट की देख-रेख में चल रहे हैं।

हरिद्वार

परम पूज्य माता जी ने आजीवन अनेक तीर्थ यात्राएं की। हरिद्वार के साथ तो अत्यधिक लगाव रह परम पूज्य माता जी ने हरिद्वार में भारत माता मन्दिर के पास सप्त सरोपर मार्ग पर भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया और यह वैष्णों देवी की गुफा चाला मन्दिर के नाम जाना जाता है। वहां आद्वालुओं के ठहरने के लिए 100 कमरे भी बने है।

रामतीर्थ

अमृतसर के पास लव-कुश की जन्मभूमि रामतीर्थ पर भी परम पूज्य माता जी ने भवन का निर्माण करवाया । यह तीर्थ जो जर्जर स्थिति में था उसका सारा जीर्णोद्वार परम पूज्य माता जी ने ही किया।

अन्य मन्दिर परिसर

दिल्ली में रोहिणी में पूज्य माता जी की प्रेरणा से भव्य मन्दिर बना है। चिन्तपूर्णी में यात्रियों की सुविधा के लिए विशाल सराए बनाई गई है। प्रत्येक आश्रम में रहने की सुविधा निशुल्क है। वृन्दावन में श्रीकृष्ण धाम हेतु एक विशाल भवन बनाना विचारधीन है।

हस्पताल

धर्म कर्म से पूर्ण, उतम संस्कारों से समृद्ध, प्रेम, आध्यात्मिकता और सामाजिक सद्व्यवहार से सुस्वस्थ जीवन जीने की प्रेरणा माता जी ने दी उनकी संगत व सामाज मन और विचारों से शुद्ध व स्वस्थ तो रहे ही, शारीरिक व्याधियों से भी निःशुल्क या सामान्य शुल्क द्वारा उच्च कोटि की परिचर्या का लाभ पा सकें यह माता जी की इच्छा थी कि उनकी प्रेरणा से बने टरस्ट के कार्यकर्ता धर्म को जन्मान का स्त्रोत बना रहे हैं। मन्दिर के सामने एक हस्पताल में एक छोटे से कमरे से निःशुल्क डिस्पेंसरी द्वारा इस जन कल्याणकारी योजना का प्रारम्भ हुआ। माता जी ने जिस नन्हें पौधे को रोपा था आज उन्हीं की कृपा व आशीषों की वर्षा से वह एक पट वृक्ष बन गया है। यह हस्पताल अपने आप मे सर्वसुविधा सम्पन्न कहलाने में समर्थ है। मेडीसिन, दन्त चिकित्सा, नेत्र-चिकित्सा, ई.एन.टी. ई. सी. जी. अल्टरा-साउंड औरथोपीडिक्स एक्स रे लैबोटरी व फिजियाथरेपी के विभाग बड़ी निगुणता व अनुशासित रूप में कार्यरत है। शल्य चिकित्सा के लिए ओपरेशन थियेटर की योजना भी शीघ्र ही पूर्ण होने बाली है। यहां के प्रमुख डॉक्टर समान भाव से अपने मरिजों का ध्यान रखते है। इन निस्वार्थ कार्य करने वाले विशेषज्ञों का सेवा भाव प्रशंसनीय है। ये सभी उस राह के सही है जिन का पथ प्रदर्शन करते हुए पूज्य माता जी ने हर धर्म से ऊँचा मानव-धर्म बताया हर वर्ग का व्यक्ति निस्सकोच यहां चिकित्सा लाभ उठा रहा है। यह हस्पताल उनके लिए संजीवनी सदय है। माता जी ने अपनी संगत को ग्रामी भी अपना अनुयायी नहीं समझा, उन्हें अपनी संत समझ कर किया और उन्हें अपनी शक्ति समझा। यह हमेशा कहा करती थे कि हर अच्छा कार्य प्रभु की कृपा से होता है। अपने आलोकिक प्रभाव से पूज्या माता जी ने कईयों की असाध्य बिमारियाँ दूर की किसानों को सन्तान देख दिया, अभाव ग्रस्तों के अभाव दूर किए। बड़े प्यार सरलता व एकाग्रता से उन्होंने हर वर्ग की सहायता की। जो भी उनके पास गया कुछ पाकर ही लौटा। हर व्यक्ति यह ही कहता है हमने जो भी पाया है-इन्हीं से पाया है। जीवन में होने वाली घटनाओं की पूर्ण सूचना देकर कभी बनकर तो कभी कय बन कर उन्होंने हमारी रक्षा की। इस स्नेहमयी जननी का यश फल्ता चला गया। सड़क के पत्थरों को उन्होंने अपनी कृपा से शालिग्राम बना दिया। इन कृपा पाने के स्मृतिपटल पर अनेक ऐसे प्रगति है जिन्हें सुन कर हमारी बुद्धिमत्ता हो उठती है। मन में प्रश्न उठते है पर जो इन प्रसंगों के साक्षी है ये जन्तर अझा से इन्हें बताये हुए थकते नहीं महान आत्माओं का प्रभाव जीवन में असभव को भी समय कर देता है। रानी का बाग में रहने वाले एक गृहस्य सहरा दुर्घटना में काफी घायल हो गए। संगत के समक्ष माता जी ने उनका नाम पुकार कर संदेश दिया कि उनकी शादी से पूर्व मन्नत मागी गई थी कि वैष्णव देवी मंदिर पाटडा में दर्शन यो लिए परिवार जाएगा। नाता जी ने इस अधूरी मल्लत या कहीं अमृतसर के मंदिर में पूरा करने का आश्वासन व प्रेरणा देकर उन पर अमूली कृपा की। निस्संतानों के लिए उनकी ममता का आंचल विशाल था। उसकी छोह में आर्शीवाद की या होती रहती थी। पंजाब के एक राज प्रमुख की भतीजी अनेक उपधारा के बाद भी संतान सुख से पति थी। माता जी की छत्र छाया में यह आ ना सहरा नाता जी ने छ महीने उन्हें समाधान के बाद अपने पान उनकी सेवा सुश्रूषा की कृपा रूरूप यह एक स्वत्य शिशु की जननी बनी और आज भी मातृकृपा की आकांक्षी है। माता जी केवल व्यक्ति विशेष की ही नहीं, समान देश व राष्टर की शुभाकांक्षिणी थी। जिन दिनों पंजाब उग्रवाद और राजनैतिक उथल-पुथल के झंझावात से जुझ रहा था, माता -जी गुजरात श्री द्वारकाधीश के दर्शन के लिए गए। पंजाब प्रदेश में शान्ति हो, इस संकल्प के साथ उन्होंने मन्नत मांगी कि ऐसा होने पर ये एक वस्त्र नया चोला चाए गे। वहाँ के पुजारियों ने बताया कि शुभवस्त्रधारिणी किसी संभ्रान्त महिला ने ये वस्त्र चाए हैं। आप जिस स्थान पर आये हैं यह एक सिद्ध शक्ति पीठ है यहां हम पूरे विश्वास से कह सकते हैं कि आप की हर मुराद पूरी होगी। प्रकृति में चाहे कोई भी परिवर्तन हो लेकिन मां का अस्तित्व ज्यो का त्यों बना रहेगा। मां अपने तेज से ऐसे ही इस धरती को प्रभावित करती रहेंगी। आप सभी धन्य हैं जो इस परम पावन धरती पर दर्शनार्थ आये हैं। मां भगवती के चरण कमलों में हम प्रार्थना करते हैं आप सब पर परम पूज्य माता जी का आर्शीवाद बना रहे। वह उस दीपशिखा सदृश थीं जिन्होंने हमारे मन के अँधेर के दरवाजे पर अच्छाइयों की प्रकाश-किरणों से दस्तक दी। आज के भौतिक, व्यवहारिक, अर्थ- लोलुप समाज को मानवता की रोशनी दी हमें सनातन धर्म के शाश्वत सिद्धान्तों के पालन का संदेश दिया। 9 जनवरी 1994 को पूज्या माता जी ने अपना लौकिक शरीर त्याग दिया और ज्योतिस्वरूपा मां परमपिता की अखंड ज्योति में समा गई। उनके द्वारा दिखाई राह पर अनेक कर्मठ कर्मयोगी कार्यरत है। ये कृतसंकल्प योद्धा नगवती मां के कृपापारस से कुन्दन बन कर निखर गए है। माता जी की धरोहर को इन्होंने पहले से भी अधिक संवारा है। माता जी का प्रिय मंत्र हरि ओम् हरि ओअम् हरि ओअम् हरे "निःशब्द न केवल वातावरण में गूँजता रहता है बल्कि उनकी कृपा के पात्र हर व्यक्ति की चिन्ता पर छाये रहते हैं। सदियों-2 तक हम सब पर अपनी कृपा व आशीषों की वर्षा करने वाली पूज्या माता जी को सहस्त्र बार नमन् व सादर प्रणाम्। पवित्र स्थान से यह संदेश लेकर जाएं : धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणीयों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो, सब का बेडा पार हो। जय माता की जय माता की जय माता की।।

चिन्तपूर्णी माता की आरती

जय जय चिन्तपूर्णी मेरी मैया जय-2 संकटहरणी

जय हो मात तुम्हारी, जय हो मेरी अन्वा जी तुम्हारी

जय-2 चिन्तपूर्णी, मेरी मां जय-2 आनन्दकरणी

जय-2 तुमरी ब्रहमा जी कडे, मैया चारों वेद उचार

ब्रहम जी के पेट दयाए पल में शंखासुर मार

जय-2 चिन्तपूर्णी

जय-2 तुमरी शिवजी कहें, मैया सीस बड़े गंगाधार मैया सीस बड़े गंगवार ब्रह्मलोक से आयी जल धारा

देय लोक से आई जलधारा

श्री मातृ लोक सुवार जय- 2 तुनरी विष्णु जी करत हैं, राख चक गदा चार शेष नाग की शैया, अस्तुति करत अपार

जय-2 तुनरी ध्यानू जी करत है, चरणा तो बलिहारी, जादा चरणां तो बलिहारी, नाम दान किया कर दीजो.

दीजों मां चरणों का ध्यान जय-2 चिन्तपूर्णी